आगामी लोकसभा चुनाव के लिए तारीखों का एलान हो चुका है। 543 लोकसभा सीटों के लिए सात चरणों में मतदान होंगे जिनके नतीजे 23 मई को आएंगे। नतीजों से पता चल जाएगा कि सत्ता की चाबी जनता ने किसके हाथ में सौंपी हैं। लेकिन उससे पहले राजनीतिक पार्टियां चुनाव प्रचार पर काफी खर्च करेंगी। एक अमेरिकी विशेषज्ञ का दावा है कि यह भारत के इतिहास का सबसे महंगा और किसी भी लोकतांत्रिक देश में आयोजित होने वाला सबसे महंगा चुनाव होगा।
कार्नेजी एंडॉमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के साउथ एशिया प्रोग्राम के निदेशक मिलन वैष्णव ने कहा, 'अमेरिका में 2016 में हुए राष्ट्रपति के चुनाव का खर्च 4 खरब 55 अरब 05 करोड़ 52 लाख 50 हजार रुपये आया था। यदि माना जाए कि 2014 लोकसभा चुनाव के दौरान 3 खरब 50 अरब 04 करोड़ 25 लाख रुपये का खर्च आया था तो इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि 2019 के चुनावों में इससे ज्यादा खर्च होगा।'
उन्होंने आगे कहा, 'जिसके कारण यह भारतीय चुनाव दुनिया का सबसे महंगा चुनाव बन जाएगा। आने वाले चुनावों से जुड़ी अनिश्चितता भाजपा और विपक्ष के बीच एक संकीर्ण अंतर का संकेत देती है। जिसकी वजह से खर्च बढ़ेगा।' वैष्णव भारतीय चुनावों पर होने वाले खर्च को लेकर एक विशेषज्ञ के तौर पर उभरे हैं। उनका कहना है कि आगामी भारतीय चुनाव अब तक के भारतीय इतिहास के सबसे महंगे चुनाव होंगे।
वैष्णव का कहना है कि पिछले चुनावों की तुलना में इस बार चुनाव का खर्च दोगुना होगा। भारतीय चुनावों की अत्यधिक लागत भारतीय राजनीतिक अर्थव्यवस्था का एक आधार बन गया है जिसे व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है। उनका कहना है कि भारत में राजनीतिक योगदान को लेकर बिलकुल भी पारदर्शिता नहीं है। उस शख्स की पहचान करना नामुमकिन है जिसने राजनेता या राजनीतिक पार्टी को चंदा दिया है।
साथ ही यह जानना भी मुश्किल है कि राजनेताओं को अपने प्रचार के लिए फंड कहां से मिला है। बहुत कम दानदाता अपने राजनीतिक दान का खुलासा करते हैं। उन्हें डर रहता है कि यदि उनकी पार्टी सत्ता में नहीं आई तो उन्हें इसका प्रतिकार झेलना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार द्वारा लाई गई चुनावी बांड प्रणाली का भी कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा। हमारी प्रणाली में पारदर्शिता का अभाव है।