मुलायम सिंह यादव: पिता पहलवान बनाना चाहते थे लेकिन बन गए राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी

मुलायम सिंह यादव की जड़ें गांव से जुड़ी हुई हैं। इटावा से ग्रेजुएशन किया और राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर की पढ़ाई के लिए आगरा पहुंचे। छात्र राजनीति में सक्रिय हुए। राममनोहर लोहिया की समाजवादी विचारधारा से प्रभावित हुए और पहली बार तब उन्हें लोहिया का सानिध्य मिला जब 1966 में लोहिया इटावा पहुंचे थे। 1967 में लोहिया की पार्टी से चुनाव लड़ा और जीत का ताज पहना। लोहिया की मौत के बाद मुलायम ने चौधरी चरण सिंह की पार्टी 'भारतीय क्रांति दल' का दामन थाम लिया। आपातकाल में मीसा में गिरफ्तार हुए और जेल हो गई। 1979 में चौधरी चरणसिंह ने जब 'लोकदल' की स्थापना की तो मुलायम उधर के हो गए। 1989 का दौर आया तो जनता पार्टी में शामिल होकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। मुलायम एक बार फिर साल 2019 के लोकसभा चुनाव में मैनपुरी से चुनाव लड़ रहे हैं। आइए उनके राजनीतिक सफर पर एक नजर डालते हैं...कार सेवकों पर गोली चलाकर 'राष्ट्रीय नेता' बन गए मुलायम...!


मुलायम सिंह यादव ने 4 अक्तूबर 1992 को समाजवादी पार्टी की स्थापना की। तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे मुलायम 1967 में पहली बार विधायक बने। कांग्रेस विरोध के दौर में 1977 में मंत्री बने और इसके बाद अयोध्या मुद्दे ने मुलायम को राजनीति के शिखर पर पहुंचाया दिया। यह 1990 का दौर था और भारत की राजनीतिक लड़ाई मंदिर-मस्जिद के फेर में आ गई थी। मुलायम उस वक्त सूबे के मुख्यमंत्री थे और बाबरी मस्जिद के लिए कार सेवकों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। यही वह दौर था जब भाजपा के हिंदू शिखर पुरुष आडवाणी, रथ लेकर निकले थे। सोमनाथ से अयोध्या तक माहौल को हिंदुत्वादी करने का दौर था। सत्ता में वीपी सिंह बैठे थे और आडवाणी की रथ यात्रा उनके माथे पर बल खींच रही थी। आडवाणी को रोकने का भारी दबाव था। 

जब 23 अक्टूबर को बिहार में आडवाणी की गिरफ्तारी हुई उसके सात दिन बाद ही 30 अक्टूबर को मुलायम ने कार सेवकों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 30 कार सेवकों की जान गई, लेकिन आंकड़ों की सच्चाई संदिग्ध ही रही। इस तरह मुलायम राष्ट्रीय नेता के तौर पर विख्यात हो गए। 


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