अगले 15 वर्षों में भारत सौ फीसद इलेक्ट्रिक वाहनों वाला दुनिया का पहला देश बन सकता है। केंद्र सरकार की इसे मुकम्मल बनाने की तैयारी है। इससे न सिर्फ प्रदूषण से मुक्ति मिलेगी, बल्कि महंगे जीवाश्म ईंधनों के आयात पर निर्भरता भी खत्म हो जाएगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन की हालिया रिपोर्ट से पता चला है कि दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 14 भारत में हैं। उल्लेखनीय है कि परिवहन क्षेत्र से होने वाले उत्सर्जन ने भारत के प्रदूषण के स्तर को बढ़ाया है।
परिवहन से होने वाले उत्सर्जन का प्रदूषण स्तर में योगदान
केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुमानों के मुताबिक, इस क्षेत्र में 2010 तक 188 मीट्रिक टन CO2 का उत्सर्जन हुआ जिसमें अकेले सड़क परिवहन का 87 फीसद योगदान था। यह क्षेत्र तेल का एक बड़ा उपभोक्ता भी है और वर्तमान में भारत की तेल आयात निर्भरता लगभग 80 प्रतिशत है।
पेट्रोलियम योजना और विश्लेषण सेल के मुताबिक डीजल और पेट्रोल क्रमश: 40 प्रतिशत और 13 प्रतिशत तेल खपत में योगदान देते हैं। वर्ष 2014 में इस सेल ने अनुमान लगाया कि 70 फीसदी डीजल और 100 प्रतिशत पेट्रोल की मांग परिवहन क्षेत्र से थी।
पेट्रोलियम योजना और विश्लेषण सेल के मुताबिक डीजल और पेट्रोल क्रमश: 40 प्रतिशत और 13 प्रतिशत तेल खपत में योगदान देते हैं। वर्ष 2014 में इस सेल ने अनुमान लगाया कि 70 फीसदी डीजल और 100 प्रतिशत पेट्रोल की मांग परिवहन क्षेत्र से थी।
गेम चेंजर बन सकते हैं इलेक्ट्रिक वाहन
इलेक्ट्रिक वाहन (ईवीएस) के लिए गेम चेंजर साबित हो सकते हैं। दरअसल ईवीएस नियमित संचालन के लिए पारंपरिक आंतरिक दहन इंजन-आधारित वाहनों की तुलना में कम-से-कम 3 से 3.5 गुना अधिक ऊर्जा कुशल होते हैं। इसके अलावा, ईवीएस से किसी तरह का उत्सर्जन नहीं होता है, इसलिए स्थानीय प्रदूषण भी नहीं होता है।
इस प्रकार ईवीएस को अपनाना न केवल तेल आयात को कम करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम साबित होगा, बल्कि ये स्थानीय वायु की गुणवत्ता में सुधार करने में भी सहायता कर सकते हैं।
इस प्रकार ईवीएस को अपनाना न केवल तेल आयात को कम करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम साबित होगा, बल्कि ये स्थानीय वायु की गुणवत्ता में सुधार करने में भी सहायता कर सकते हैं।