समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि उत्तर प्रदेश में किसान तो पहले से ही परेशानियों से घिरा था आज बेमौसम की बरसात के साथ हुई भीषण ओलावृष्टि से उस पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है। उसकी गेहूं, सरसों, मटर, चना की फसल चौपट हुई है। आम के बौर टूट गए हैं। भाजपा सरकार की प्राथमिकता में कारपोरेट होने के कारण किसान, गरीब पर उनका ध्यान नहीं जाता है। ओलावृष्टि की आपदा पर राज्य सरकार का रवैया उदासीन और उपेक्षापूर्ण है। बजाय तुरन्त किसान की अंतरिम राहत देने के भाजपा सरकार फसल को हुए नुकसान के आंकलन का बहाना ढूंढ रही है।
सभी जानते हैं कि प्राकृतिक आपदा से त्रस्त किसान की फसल के नुकसान का आंकलन कितना सही-गलत होता है। इसमें लाल फीताशाही की देरी भी लगती है। गरीब किसान को अपनी फसल का मुआवजा समय से मिले तो उसे राहत भी मिले पर भाजपा सरकार तो चाहती ही नहीं है कि किसानों का भला हो। किसान भी भाजपा के इन हथकंडो से परिचित हैं।
भाजपा ने पहले फसल की लागत का ड्योढा मूल्य देने की घोषणा की थी, वह तो दूर उसे न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं मिल पाया। गन्ना किसान के बकाये पर 14 दिनों बाद ब्याज मिलना था, वह किसी को नहीं मिला। किसान की आय दुगनी करने का फार्मूला भी अभी तक सामने नहीं आया है। कृषि अर्थव्यवस्था पूरी तरह बेपटरी हो गई है।
किसान की मुसीबत इन दिनों अन्ना पशुओं ने भी मचा रखी है। बड़ी तादाद में आकर ये खेतों में खड़ी फसल चर जाते है। अन्ना पशुओं से बचाव के लिए किसान या तो मंहगी फेंसिंग कराता है या फिर खुद किसान चैकीदार बनकर रात-रात खेत की रखवाली करता है। मुख्यमंत्री जी अपने 5 कालीदास मार्ग स्थित सरकारी आवास में ओले गिरते नहीं देखते तो शायद वे इस आपदा को भी तुकबंदी में उड़ा देते।
भाजपा राज उत्तर प्रदेश के लिए मुसीबत बनी हुई है। इस सरकार ने विकास का कोई काम नहीं किया। शिक्षा, स्वास्थ्य की व्यवस्थाएं चौपट है। नौजवान बेरोजगारी के शिकार हैं। मंहगाई चरम पर है। प्रदेश को ऐसा नेतृत्व मिला है जो अपनी गलतियां छुपाने, साम्प्रदायिक बयान देकर बहलाने के लिए ‘तुकबंदी‘ का सहारा लेकर निश्चिंत सो जाता है। प्रदेश में जनता तबाह है उसकी समस्याओं के समाधान में उसकी कोई रूचि नहीं है।