डॉ गौड़ अपनी सेवाएं देते रहे. जुलाई के पहले हफ्ते मे डॉ गौड़ को कोरोना के लक्षण खुद में दिखे. जांच में उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई. पहले ही कई बीमारियों से जूझते गौड़ ने अस्पताल में भर्ती होने के लिए एम्बुलेंस सुविधा को लगातार फोन किया, लेकिन हर बार उन्हें कोई जवाब नहीं मिला.
आखिर में थक हारकर डॉ गौड़ के ही एक सहयोगी, डॉ शकील उन्हें अपनी गाड़ी में बैठाकर पटना एम्स ले गए.
बिहार में ये कोरोना काल में स्वास्थ्य महकमें की बदइंतजामी का अकेला मामला नहीं है. हाल ही में बिहार सरकार में गृह विभाग के एक अधिकारी का वीडियो वायरल हुआ था जिसमें वो एम्स, पटना के बाहर फुटपाथ पर लेटे थे. कोरोना संक्रमित अधिकारी को एम्स में बेड बहुत देर से मिला जिसके चलते उनकी मौत हो गई.
राज्य के अलग अलग कोने से रोजाना ऐसी ख़बरे आ रही है.
साफ़ है राज्य की स्वास्थ्य संरचना कोरोना के इन बढ़ते मामलों से निपटने में नाकाम रही है. ऐसे में बिहार में सरकार ने 16 से 31 जुलाई तक कम्प्लीट लॉकडाउन लगाने का फैसला लिया है.
14 जुलाई को गृह विभाग द्वारा जारी आदेश के मुताबिक राज्य, जिला, अनुमंडल और अंचल मुख्यालय के साथ नगर निकाय क्षेत्रों में पूरी तरह लॉकडाउन होगा. राज्य में बस के परिचालन पर रोक लगाई गई है, लेकिन मालवाहक गाड़ियों और आवश्यक सेवाओं से जुड़े लोगों के निजी वाहन के परिचालन पर कोई रोक नहीं है.
राशन, किराने, दूध, फल, सब्जी , मांस - मछली की दुकाने खुली रहेगी. वहीं स्वास्थ्य से जुड़ी दुकाने/ सेवाओं पर कोई पाबंदी नहीं है. बैंक, इंश्योरेंस, पेट्रोल पम्प खुले रहेंगें तो टैक्सी और ऑटो रिक्शा पर भी रोक नही है.
साथ ही अनलॉक 1 के दौरान खुले धार्मिक स्थलों को बंद करने का फैसला लिया गया है. हालांकि होटल और रेस्टोरेंट शर्तों के साथ खोलने की अनुमति दी गई है. इसके अलावा स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स और स्टेडियम को भी खुले रखने की अनुमति मिली है, लेकिन वहां दर्शकों का प्रवेश वर्जित है.
बता दें मार्च महीने से मई तक चार बार लॉकडाउन के बाद 8 जून से केन्द्र के दिशा निर्देशों के मुताबिक राज्य में कुछ छूट दी गई थी. लेकिन कोरोना के बढ़ते मामले को देखते हुए राज्य के कई जिलों में स्थानीय प्रशासन ने अपनी ज़रूरत के हिसाब से कुछ दिनों का लॉकडाउन लगाया था. राजधानी पटना मे भी 7 दिन का लॉकडाउन लगाया गया था जो 16 जुलाई को पूरा हो रहा था.
लेकिन पिछले लॉकडाउन से सरकार ने क्या हासिल क्या, इस पर सवाल अब भी बना हुआ है. सरकारी आदेश में ये भी साफ़ नहीं है कि इस बार के लॉकडाउन से सरकार क्या हासिल करना चाहती है.
गांवों में नहीं लगेगा लॉकडाउन
हालांकि इस बार लॉकडाउन से गांव को बाहर रखा गया है. माना जा रहा है कि इसका मकसद ग्रामीणों को खेती किसानी के काम में कोई परेशानी नहीं हो. लेकिन गांव नए तरीके की चुनौती से जूझ रहे है.
कटिहार के मनसाही प्रखंड की सितौरिया पंचायत के सरपंच जितेन्द्र पासवान कहते है, " बाहर से कोई भी व्यक्ति आ रहा है तो उसकी कोई जांच नहीं हो रही है. ऐसे में गांव वाले परेशान रहते है कि वो संक्रमित है या स्वस्थ है. उनको किसी सुरक्षित जगह रखने का प्रबंध सरकार को करना चाहिए ताकि गांव में कोरोना नहीं फैले. यहां फैल गया तो बहुत बदतर स्थिति होगी."
बता दें, बीती 15 जून से क्वारंटीन सेंटर भी बिहार सरकार ने बंद कर दिए थे.
जांच बढ़ी, लेकिन बिहार अब भी पीछे
बीते 5 दिनों की जांच का आंकड़ा देखे तो राज्य स्वास्थ्य समिति के आंकडों के मुताबिक 11 जुलाई को 9108, 12 जुलाई को 9251, 13 जुलाई को 9129, 14 जुलाई को 10018, 15 जुलाई को 10052 सैंपल की जांच हुई. यानी जांच लगातार बढ़ रही है.
नीति आयोग के सीइओ अमिताभ कांत की ट्वीटर पर 4 जुलाई को साझा की गई जानकारी के मुताबिक देश के 19 राज्यों में बिहार में टेस्टिंग सबसे कम है.
राज्य में महज प्रति 10 लाख पर 2197 जांच या टेस्टिंग हो रही है. जबकि उत्तरप्रदेश, झारखंड, तेलंगाना, मध्यप्रदेश सहित अन्य राज्य बिहार से बेहतर स्थिति में है. पड़ोसी राज्य उत्तरप्रदेश में जहां प्रति 10 लाख पर 3798 टेस्ट हो रहे थे, वहीं झारखंड में ये आंकड़ा 4416 का है.
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और स्वास्थ्य मंत्री मंगल पाण्डेय कई मौके पर जांच की रफ्तार तेज़ करने की बात दोहराते रहे है. खुद स्वास्थ्य महकमे ने 20 जून तक ही जांच की क्षमता 10 हजार करने का लक्ष्य रखा था, जिसको 14 जुलाई को पाया जा सका.
स्वास्थ्य मंत्री मंगल पाण्डेय के मुताबिक, "बिहार में कोरोना संक्रमितों की लगातार बढ़ती संख्या को देखते हुए 441 कोविड केयर सेंटर और 74 केयर सेंटर बनाए गए है. इसके अलावा 4 डेडिकेटड कोविड अस्पताल -एन एम सी एच(पटना), एन एम सी एच (गया), एम्स(पटना), जे एल एन एम सी एच(भागलपुर) बनाए गए है. साथ ही अनुमंडल अस्पतालों में भी कोरोना सैंपल लेने की व्यवस्था हो रही है ताकि ग्रामीण स्तर पर जांच की सुविधा मिले."
टेस्टिंग पर सवाल
हालांकि राज्य में जांच दर बढ़ रही है, लेकिन इस जांच में लापरवाही के मामले सामने आ रहे है.
32 साल के उदय (बदला हुआ नाम) की जांच बीती एक जुलाई को हुई थी. लेकिन उन्हें रिपोर्ट मिली 11 जुलाई को.
उदय ने बीबीसी से बातचीत में बताया , " टेस्ट कराने के चार दिन तक मैने खु़द को कमरे में बंद रखा. उन्होंने अपनी जांच रिपोर्ट के बारे में जानकारी ली, तो उन्हें जवाब मिला कि जिनकी रिपोर्ट निगेटिव है उन्हें कोई काग़ज नहीं मिल रहा है, जिसके बाद मैं आराम से दफ्तर जाने लगा."
वो बताते है कि उन्हें अचानक 11 तारीख़ को फोन आया और कहा गया कि वो कोरोना पॉजिटिव है. सोशल स्टिग्मा झेल रहे उदय कहते है, "लोग लगातार फ़ोन करके पूछ रहे है कि जब आप पॉजिटिव थे, तो बाहर घूमने की क्या ज़रूरत थी? मैं लोगों से कहते कहते थक गया हूं कि मेरी कोई गलती नहीं है. सारी गलती प्रशासन की है