सुप्रीम कोर्ट में पेश की गई रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में निकल रहे कोविड-19 बायोमेडिकल कचरे की मात्रा मई में 25.18 टन प्रतिदिन थी, जो जून में बढ़कर 372.47 टन प्रतिदिन तक हो गई.
नई दिल्ली: कोरोना महामारी के बीच दिल्ली में कोविड-19 बायोमेडिकल कचरा मई महीने की तुलना में जून में करीब 15 गुना बढ़ गया है.
पर्यावरण एवं प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण (ईपीसीए) द्वारा बीते सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सौंपी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली में निकल रहे कोविड-19 बायोमेडिकल कचरे की मात्रा मई में 25.18 टन प्रति दिन से बढ़कर जून में प्रति दिन 372.47 टन तक हो गई है.
हालांकि जुलाई महीने में ये आंकड़ा थोड़ा घटकर 349 टन प्रतिदिन हो गया. इसके अलावा ईपीसीए ने यह भी कहा है कि शहर में ज्यादा कचरे का उत्पादन हो रहा है, जो बायोमेडिकल कचरे के निस्तारण के लिए बनाए गए कॉमन बायोमेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट फैसेलिटी (सीबीडब्ल्यूटीएफ) की क्षमता से काफी अधिक है.
प्राधिकरण ने कहा कि कोरोना संक्रमण के मामलों में बढ़ोतरी के कारण दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में अधिक कचरे का उत्पादन हो रहा है. इन चार राज्यों में से सबसे ज्यादा बायोमेडिकल कचरे का उत्पादन दिल्ली में हो रहा है.
‘सीपीसीबी और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार जून (चार एनसीआर राज्यों में) में भारी वृद्धि इसलिए भी थी क्योंकि घरों और क्वारंटीन सेंटर्स से निकले बायोमेडिकल कचरे को अलग नहीं किया जा रहा था.’
बीते 24 जुलाई को एक बैठक में नॉर्थ और साउथ एमसीडी ने ईपीसीए को बताया कि वे कोविड-19 कचरे को घरों और क्वारंटीन सेंटर्स से वेस्ट-टू-इनर्जी (डब्ल्यूटीई) प्लांट में भेज रहे थे. जबकि इसे सीबीडब्ल्यूएफ में भेजा जाना चाहिए था.
इस पर नॉर्ड एमसीडी के प्रवक्ता ने कहा कि वे इस मामले पर ध्यान देंगे और अनुपालन करने का हरसंभव प्रयास करेंगे.
इसके साथ ही रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कोविड-19 महामारी के कारण पीपीई किट, दस्ताने और फेस मास्क या शील्ड के कारण प्लास्टिक कचरे की मात्रा में वृद्धि हुई, जिसके कारण शहर में ठोस कचरा प्रबंधन की समस्या भी खड़ी हो रही है.
‘इस तरह के कचरे का संग्रह- जो संक्रमित घरों या क्वारंटीन सेंटरों से नहीं है- एक बहुत बड़ी चुनौती है. घरेलू स्तर पर ही इसके अलगाव की आवश्यकता है ताकि सामान्य कचरे को रिसाइकल किया जा सके और लैंडफिल में नहीं भेजा जाए.’
रिपोर्ट में कहा गया है कि सीपीसीबी ने आकलन कर बताया है कि यदि उचित तरीके से विभिन्न कचरों को अलग-अलग किया जाता है तो इन क्षेत्रों में पर्याप्त कॉमन बायोमेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट फैसेलिटी (सीबीडब्ल्यूटीएफ) हैं, जिसमें बायोमेडिकल कचरों का निस्तारण किया जाता है.
आकड़ों के मुताबिक यदि स्थिति रफ्तार से कचरे का उत्पादन होता है तो दिल्ली हर महीने 2,220 टन, हरियाणा 288 टन, उत्तर प्रदेश 1,656 टन और राजस्थान 72 टन कचरों का निस्तारण कर सकता है.
नगर निगमों- उत्तर, पूर्व, दक्षिण, नई दिल्ली, गुड़गांव, फरीदाबाद और गाजियाबाद ने सुप्रीम कोर्ट पैनल से कहा है कि उन्होंने लोगों के घरों और क्वारंटीन सेंटरों से कचरे को इकट्ठा करने और इसे सीबीडब्ल्यूटीएफ को भेजने के लिए सिस्टम स्थापित किया हुआ है.