दिल्ली हाईकोर्ट ने बीते गुरुवार को इस बात को लेकर नाराजगी जाहिर की कि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने रैपिड एंटीजेन टेस्ट्स (आरएटी) करने की मंजूरी देने के लिए जरूरी प्रक्रियाओं या शर्तों को पूरा करने के लिए प्राइवेट लैब और अस्पतालों को एक महीने का समय दिया है.
जस्टिस हिमा कोहली और सुब्रामोनियम प्रसाद की पीठ ने कहा, ‘आपको नहीं लगता कि कोविड-19 महामारी को देखते हुए एक महीने बहुत लंबा समय है. आप एक महीने का समय क्यों दे रहे हैं.’
पीठ ने आगे कहा, ‘इससे जनता को क्या लाभ होगा? उन्हें (प्राइवेट लैब और अस्पताल) अपने सिस्टम को ठीक करना चाहिए. अगर आप उन्हें एक महीना देंगे तो वे दो महीने लेंगे. कैसे एक अस्पताल राष्ट्रीय परीक्षण और अंशशोधन प्रयोगशाला प्रत्यायन बोर्ड (एनएबीएल) से मान्यता प्राप्त करता है, उन्हें अपने स्वयं के सिस्टम को चुस्त-दुरुस्त की जरूरत है.’
कोर्ट ने आगे कहा, ‘इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि 15 जुलाई, 2020 तक दिल्ली में कोविड-19 संक्रमण के कुल 1,16,993 मामले हैं, जिनमें से 17,807 सक्रिय मामले हैं, और अभी तक 653 कंटेनमेंट जोन हैं, हमारा मानना है कि आईसीएमआर द्वारा आवेदनकर्ताओं को जरूरी प्रक्रियात्मक औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए दिया गया एक महीने का समय बहुत लंबा है.’
पीठ ने कहा, ‘जैसा कि हमें बताया गया है कि प्रयोगशालाओं को जरूरी औपचारिकताओं को पूरा करने से पहले निरीक्षण करने के लिए एनएबीएल से संपर्क करना पड़ता है, इसलिए निरीक्षण को जल्द करने के लिए एनएबीएल को निर्देश दिया जाना चाहिए, ताकि आवेदक आईसीएमआर द्वारा आवश्यक औपचारिकताओं को जल्द से जल्द पूरा कर सकें.’
एनएबीएल की ओर से पेश हुए केंद्र सरकार के वकील अनुराग अहलूवालिया से कोर्ट ने कहा कि वे सुनिश्चित करें की इन निर्देशों को पहुंचाया जाया और इस पर हलफनामा दायर किया जाए.