सरकार को कोरोना काल अवधि में स्कूल की फीस माफ करने की भी पहल करनी चाहिए-अधिवक्ता आबीद  हुसैन

                                                             


                            अधिवक्ता आबीद  हुसैन Ex general secretary बार एसोसिएशन गौतम बुद्ध नगर
  गौतमबुद्धनगर  नोएडा अधिवक्ता आबिद हुसैन जी का कहना है की कोरोना संक्रमण के खतरे को देखते हुए देश संक्रमण से जूझ रहा है सार्वजनिक परिवहन के सभी साधन-रोडवेज की बसें, ट्रेन और हवाई जहाज पूरी तरह से बंद है। भीड़भाड़ की संभावना वाली सभी जगहों- मॉल, होटल, बाजार, सिनेमा हॉल यहां तक कि स्कूल और कॉलेज भी पूरी तरह से बंद हैं।


सब यह उम्मीद लगा रहे हैं और दुनियाभर के अनुभव भी यही बताते हैं कि घर में कैद रहकर ही कोरोना को हराया जा सकता है। ऐसे माहौल में देश के लाखों लोगों की आमदनी भी बंद हो गई है। प्रधानमंत्री भले ही अपील कर रहे हों कि किसी को भी नौकरी से नहीं निकाला जाए। लेकिन कड़वी सच्चाई तो यही है कि लोगों की नौकरियां जा रही हैं और जिनकी बच भी रही हैं, उन्हें वेतन में कटौती का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में बच्चों की शिक्षा के सामने भयावह संकट खड़ा हो गया है।


अब सर्वविदित तथ्य है कि देश का हर अभिवावक अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में ही पढ़ाना चाहता है। प्राइवेट स्कूलों का आलम तो यह है कि वो हर कीमत पर बच्चों की पढ़ाई के नाम पर उनके अभिभावकों की जेबें ढीली करता रहता है। शिक्षा का स्तर भले ही जो हो लेकिन ये प्राइवेट स्कूल कॉपी और किताबें महंगें दामों पर बेचते हैं। ड्रेस बेचने पर रोक लगाई गई तो इन्होंने इस बात की पुख्ता व्यवस्था कर दी कि बाहर भी अभिभावक एक ही दुकान से ड्रेस लें जो बाजार से कई गुणा ज्यादा महंगा होता ही है। दुर्भाग्यजनक स्थिति तो यह है कि कोरोना महामारी और लॉकडाउन के संकट के समय पर भी ये स्कूल अपनी मनमानी से बाज नहीं आ रहे।  स्कूल वालों ने फीस बढ़ा दी है और पैरेंट्स पर अप्रैल-मई-जून- जुलाई यानि चार महीनों की फीस एक साथ जमा करने का दबाव बनाया जा रहा है। यह महीना नई कक्षा के शुरू होने का होता है इसलिए वार्षिक शुल्क, विकास शुल्क जैसे कई शुल्क वसूलना स्कूल पहले से ही अपना अधिकार मानते आये हैं।


ऐसे कठिन और नाजुक दौर में यह जरूरी हो जाता है कि स्कूलों की मनमानी पर लगाम लगाने और अभिभावकों को राहत देने के लिए सरकारें सामने आएं। सभी राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर पर सामने आएं। कई राज्य सरकारें इसे लेकर आगे भी आई हैं।


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