कोरोना महामारी से ग़रीब सबसे ज़्यादा प्रभावित, मांग को पटरी पर आने में लंबा समय लगेगा: आरबीआई

आरबीआई ने अपनी हालिया रिपोर्ट में कहा है कि भारत को सतत वृद्धि की राह पर लौटने के लिए तेज़ी से और व्यापक सुधारों की ज़रूरत है. रिपोर्ट में कहा गया है अब तक सकल मांग के आकलन से पता चलता है कि खपत पर असर काफ़ी गंभीर है. केंद्रीय बैंक ने कहा है कि इस महामारी ने एक नई असमानता को उजागर किया है.



नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बीते मंगलवार को कहा कि अर्थव्यवस्था में मांग को पटरी पर आने में लंबा समय लगेगा और इसका कोविड-19 के पहले के स्तर पर पहुंचना सरकारी खपत पर निर्भर करेगा. 


केंद्रीय बैंक ने कहा है कि इस महामारी ने एक नई असमानता को उजागर किया है और गरीब सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं.


आरबीआई ने अपनी हालिया रिपोर्ट में कहा कि भारत को सतत वृद्धि की राह पर लौटने के लिए तेजी से और व्यापक सुधारों की जरूरत है.


केंद्रीय बैंक ने कहा, ‘साल के दौरान अब तक सकल मांग के आकलन से पता चलता है कि खपत पर असर काफी गंभीर है और इसके पटरी पर तथा कोविड-19 के पूर्व स्तर पर आने में लंबा समय लगेगा.’


रिपोर्ट में कहा गया है कि सोच समझकर की जाने वाली यानी मनमर्जी वाली व्यक्तिगत खपत नदारद है. अर्थव्यवस्था में परिवहन, सेवा, होटल, मनोरंजन और सांस्कृतिक गतिविधियां विशेष रूप से प्रभावित हैं. इन क्षेत्रों में खपत की हिस्सेदारी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब 60 प्रतिशत है.


आरबीआई के अनुसार, ‘आने वाले समय में महामारी से प्रभावित मांग को सरकारी खपत से सहारा मिलने की उम्मीद है. निजी खपत मांग में सुधार को तभी आगे बढ़ाएगी जब यह मजबूत होगी. जब तक खर्च योग्य आय नहीं बढ़ती है और लोग मनमर्जी से खर्च करने की स्थिति में फिर आ जाते हैं तब तक जरूरी खर्च के जरिए ही निजी मांग बढ़ेगी.’


रिजर्व बैंक ने अपनी सालाना रिपोर्ट में हमेशा की तरह आर्थिक वृद्धि का अनुमान नहीं दिया है. हालांकि उसने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के 2020-21 में 3.7 प्रतिशत और ओईसीडी (आर्थिक सहयोग और विकास संगठन) के 7.3 प्रतिशत गिरावट के अनुमान का जिक्र किया है.


आर्थिक वृद्धि दर कोविड-19 महामारी से पहले सुस्त पड़ गई थी. देश की जीडीपी वृद्धि दर 2019-20 में 4.2 प्रतिशत रही, जो एक दशक पहले वैश्विक वित्तीय संकट के बाद से सबसे कम है. पहली तिमाही का जीडीपी आंकड़ा 31 अगस्त को जारी होगा.


वैश्विक तथा घरेलू एजेंसियों ने अर्थव्यवस्था में 20 प्रतिशत तक की गिरावट का अनुमान जताया है.


रिपोर्ट के अनुसार, ‘देश के कई भागों में ‘लॉकडाउन’ में ढील के बाद मई और जून में जो तेजी दिखी थी, वह जुलाई और अगस्त में हल्की पड़ती नजर आई. इसका कारण कुछ क्षेत्रों में फिर से ‘लॉकडाउन’ लगाया जाना या कड़ाई से उसका पालन करना रहा. यह बताता है कि आर्थिक गतिविधियों में गिरावट दूसरी तिमाही में भी बनी रहेगी.’


आरबीआई ने कहा कि महामारी का विश्व अर्थव्यवस्था गहरा प्रभाव पड़ेगा. भविष्य इस बात पर निर्भर है कि कोविड-19 महामारी कितनी तेजी से फैलती है, कब तक बनी रहती है और टीके की खोज कब तक होती है.


रिजर्व बैंक ने कहा, ‘महामारी के बाद के परिदृश्य में तेजी से और व्यापक सुधारों की जरूरत होगी. उत्पाद बाजार से लेकर वित्तीय बाजार, कानूनी ढांचे और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के मोर्चे पर व्यापक सुधारों की जरूरत होगी. तभी वृद्धि दर में गिरावट से उबरा जा सकता है और अर्थव्यवस्था को वृहद आर्थिक और वित्तीय स्थिरता के साथ मजबूत और सतत वृद्धि की राह पर ले जाया जा सकता है.’


रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र और राज्य सरकारों दोनों के पास वैश्विक वित्तीय संकट में उपलब्ध संसाधनों के मुकाबले कोविड-19 से निपटने को लेकर काफी कम गुंजाइश है. केंद्रीय बैंक ने कहा कि महामारी के दौरान कर्ज और आकस्मिक देनदारियों के कारण राजकोषीय नीति का रास्ता कठिन होगा.


भारतीय रिजर्व बैंक का मानना है कि जब तक अर्थव्यवस्था कोविड-19 के झटकों से उबरकर पुन: महामारी से पूर्व की गति हासिल नहीं कर लेती है, सरकार को उपभोग के जरिये मांग को बढ़ाना होगा.


, केंद्रीय बैंक ने कहा है कि इस महामारी ने एक नई असमानता को उजागर किया है. एक तरफ जहां कुछ विशेष कर्मचारियों के पास घर से काम करने की सुविधा थी, वहीं दूसरी तरफ मजदूरों को जमीन पर उतरकर काम करना पड़ा, जिसके कारण वायरस से संक्रमित होने का खतरा लगातार बना रहा.


रिपोर्ट में कहा गया है, ‘गरीब सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं.’


रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि निजी उपभोक्ता इस समय विशेष रूप से परिवहन, आतिथ्य (हॉस्पिटैलिटी), मनोरंजन और सांस्कृतिक कार्यों पर मन-मुताबिक खर्च करने की हालत में नहीं रह गए हैं. व्यवहार में बदलाव की वजह से इन गतिविधियों की मांग सामान्य नहीं हो पाएगी.


रिपोर्ट कहती है कि आगे चलकर सरकार के उपभोग से मांग बढ़ानी होगी. जब यह रुक जाएगी, तो मनमानी खर्च से निजी खपत की भूमिका शुरू होगी. यह स्थिति तब तक रहेगी जब तक कि खर्च योग्य आय में टिकाऊ बढ़ोतरी के जरिये विवेकाधीन खर्च नहीं बढ़ता है.


इस साल के दौरान कुल मांग की स्थिति का आकलन करने से पता चलता है कि उपभोग को जो झटका लगा है वह काफी बड़ा है. इसे कोविड-19 से पूर्व के स्तर पर लाने में अभी समय लगेगा.


जुलाई के लिए रिजर्व बैंक के सर्वे से पता चलता है कि उपभोक्ताओं का भरोसा अपने सर्वकालिक निचले स्तर पर है. ज्यादातर लोग आर्थिक स्थिति, रोजगार, मुद्रास्फीति तथा आमदनी को लेकर आशान्वित नहीं हैं.


हालांकि, सर्वे में शामिल लोगों ने आगे चलकर स्थिति में सुधार की उम्मीद जताई. इसमें कहा गया है कि शहरी उपभोग मांग बुरी तरह प्रभावित हुई है.


चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में यात्री वाहनों की बिक्री और टिकाऊ उपभोक्ता सामान की आपूर्ति एक साल पहले की समान अवधि का 20 प्रतिशत और 33 प्रतिशत रह गई है. हवाई यातायात पूरी तरह ठहर गया है.


हालांकि, ग्रामीण मांग की स्थिति कुछ बेहतर है. रिजर्व बैंक का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर नकारात्मक रहेगी. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही का जीडीपी का आधिकारिक अनुमान 31 अगस्त को जारी करेगा.


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