दिनांक 16 अगस्त 2020 को पावन चिंतन धारा आश्रम के ऋषिकुलशाला प्रकल्प की ओर से नई शिक्षा नीति, 2020 पर एक राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया। ऋषिकुलशाला की राष्ट्रीय समन्वयक श्रीमती इरा भल्ला सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए ऋषिकुलशाला के उद्देश्य और उपलब्धियों के बारे में बताते हुए कहा कि ऋषिकुलशाला एक ऐसा अभियान है जिसमें समाज के हाशिये पर रहने वाले और शिक्षा से वंचित बच्चों तक शिक्षा की पहुँच बनाई जाती है! इस समय देश भर में इस प्रकल्प में 17 केन्द्रों पर 983 बच्चे इस प्रकल्प से शिक्षा का लाभ उठा रहे हैं। ऋषिकुलशाला देश भर के शिक्षकों को इस महा अभियान में साथ जोड़ना चाहती है ताकि हम अपने देश, समाज और बच्चों के प्रति अपने दायित्व का निर्वहन कर सकें। उत्तर प्रदेश के बेसिक राज्य शिक्षा मंत्री rt d डॉ. सतीश चन्द्र द्विवेदी जी ने वेबिनार का उद्घाटन करते हुए अपने संबोधन में कहा कि वह उत्तर प्रदेश सरकार की नई शिक्षा नीति को लागू करने में वेबिनार के सुझावों पर विचार करेंगे।
बेसिक शिक्षा विभाग में भी नई शिक्षा नीति को व्यवस्थित ढंग से लागू करने के लिए जो कार्ययोजना की बैठक होगी उसमे उन्होंने श्री गुरु जी से प्रत्यक्ष रूप से उपस्थित होने का आग्रह किया।
उन्होंने परिस्थितियां सामान्य होने पर आश्रम आकर यहां की चीजों को समझने की बात भी कही।
डॉ. पवन सिन्हा ‘गुरुजी’ ने ‘रेलेवेंस ऑफ द डिस्कशन’ पर अपना संभाषण प्रस्तुत करते हुए कहा कि नई शिक्षा नीति के आने से शिक्षा के क्षेत्र में बहुत बड़े परिवर्तन आने वाले हैं। शिक्षकों की चयन प्रक्रिया व शिक्षण प्रक्रिया के साथ उनके प्रमोशन प्रक्रिया में भी परिवर्तन आयेंगे इसीलिए शिक्षकों को शिक्षा के क्षेत्र में आने वाली चुनौतियों को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए।
शिक्षा नीतियों का क्रमिक इतिहास बताते हुए क्रियान्वयन के अभाव को इन नीतियों के सफल ना हो पाने का कारण बताया। बिना अभ्यास की कोई भी नीति सफल नहीं हो पाती। नवीन शिक्षा नीति में नवीन अभ्यास जरूरी है, परंतु नवीनता के स्थान पर अडॉविस्म हावी हो रहा है और आज का तक हमारा पाठ्यक्रम भी नहीं बन पाया, जबकि 1936 में ही यह निर्णय हो गया था कि भारत को उसका अपना पाठ्यक्रम बनाना चाहिए, जिसमें भारतीय इतिहास और भारतीय संस्कृति समाहित हो।
आगे गुरु जी ने नवीन शिक्षा नीति के प्रभावी क्रियान्वयन के बारे में बताते हुए सुझाव दिए कि राज्यों को अपने स्तर से भी आत्मनिर्भर भारत के विज़न को ध्यान में रखते हुए नवीन शिक्षा नीति के अनुरूप भविष्य की कार्ययोजना बनानी होगी। स्कूलों में ड्रॉपआउट रेट कम करना होगा। शिक्षकों के प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान देना होगा। कॉमन बोर्ड की स्थापना करनी होगी। इसके साथ ही परीक्षा प्रणाली में भी आमूलचूल परिवर्तन करने होंगे। स्कूलों और अध्यापकों को भी अपना स्वयं का मूल्यांकन करना होगा। अंत में गुरु जी ने सभी बातों को समाहित करते हुए कहा कि यदि हम पुराने ढर्रे पर ही चलते रहे तो नवीन शिक्षा नीति का हमें कोई लाभ नहीं मिलने वाला।
वेबिनार के मुख्य वक्ता और देश के सुप्रसिद्ध शिक्षाविद प्रोफेसर चांदकिरण सलूजा जी, डायरेक्टर, संस्कृत संवर्धन प्रतिष्ठान, ‘वॉट इज़ न्यू इन द न्यू एजुकेशन पॉलिसी’ पर चर्चा करते हुए कहा कि शिक्षा नीति वर्षों बाद आई है लेकिन इसमें बहुत कुछ नवीनताएँ हैं।
यह नई शिक्षा नीति एक अद्भुत शिक्षा नीति है। इस शिक्षा नीति का ताना-बाना मूल रूप से बच्चों को समझने, उन्हें पहचानने और उनकी विशिष्ट क्षमताओं को मान्यता देने का प्रश्न उठाती है।
प्रत्येक छात्र अथवा छात्रा की क्षमता को ना केवल पहचाना बल्कि उनको स्वीकार करना व मान्यता भी देना है। उन्हें विकसित होने के लिए और फलने- फूलने के लिए अवसर देना है। इसके लिए एक कोमल भाव चाहिए। यह नीति यही कोमल भाव जगाती है।
इस नीति के अंतर्गत शिक्षक, अभिभावक और समाज का भी बच्चों की शिक्षा में महत्वपूर्ण उत्तर दायित्व होगा।
खेल भी इस शिक्षा नीति का महत्वपूर्ण अंग है जो कि बच्चों के संपूर्ण विकास करने व अनुशासन लाने में सहायक है।
पुरानी शिक्षा नीति में बच्चों की योग्यता नापने का मापदंड सिर्फ परीक्षा थी लेकिन अब नई शिक्षा नीति में सुधार लाया गया है जिसमें बच्चों की संपूर्ण योग्यताओं पर ध्यान दिया गया है।
इस शिक्षा नीति के तहत बच्चों में चिंतन व मनन की प्रक्रिया पर बल दिया गया है जिससे बच्चों में चिंतन शक्ति का विकास हो सके। भाषा सूत्र में बच्चा कोई भी तीन भाषा चुन सकता है।
भारत में शोध को चलाने के लिए शोध निर्माण की चर्चा भी की है। डिजिटल पढ़ने व पढ़ाने की बात भी इस शिक्षा नीति में है।
उन्होंने अंत में कहा कि बच्चों को समझना और उनकी समझ के अनुसार अपनी शिक्षण पद्धति को चलाना ही इस नई शिक्षा नीति का मूल बिंदु है।
प्रोफेसर सरोज शर्मा, भूतपूर्व डीन, शिक्षा विभाग, आई.पी.विश्वविद्यालय ने नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा करते हुए कहा कि ......
नई शिक्षा नीति का उद्देश्य भारत को वैश्विक ज्ञान की महाशक्ति बनाना है और मानव निर्माण की प्रक्रिया इसमें अपने आप ही आ जाती है।
उन्होंने नई शिक्षा नीति के चार आधार शिक्षा, कौशल आत्मनिर्भरता और मूल्य आधारित शिक्षा के बारे में बात करते हुए कहा कि यह नई शिक्षा नीति भारत केंद्रित शिक्षा की बात करती है जिसमें वर्तमान को नकारा नहीं गया है। इसमें वेद से वर्तमान तक की जो शिक्षा है, उसकी चर्चा है। उन्होंने कहा मूल्यों की स्थापना छात्रों को छात्र से मानव बनाती है।
उन्होंने कहा कि हमारी पिछली नीतियों के क्रियान्वयन में कहां कमी रही अपनी उन चूकों को हमें देखना है और आगे बढ़ना है।
उन्होंने शिक्षकों की ट्रेनिंग की बात करते हुए कहा कि चार स्तरों पर अगर शिक्षा होगी तो उन्हीं चार स्तरों पर शिक्षकों की आवश्यकता होगी। हमें चार तरीके के शिक्षकों को तैयार करना होगा।
मातृभाषा और क्षेत्रीय भाषा में शिक्षण के लिए उत्तम शिक्षकों को तैयार करना होगा जिनमें भाषाई प्रवीणता हो।
इंटर्नशिप के लिए उन्होंने समाज के हर वर्ग जैसे किसान, सरपंच, कॉर्पोरेट, सेवानिवृत्त वकील, शिक्षक आदि को शामिल करने और मेंटर को पुनः परिभाषित करने की बात कही।
अन्त में उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति मानव निर्माण की बात करती है और इस यज्ञ में हम सबको अपनी शत प्रतिशत आहुति देनी चाहिए। जिससे वैश्विक परिदृश्य में मिलेनियम 2030 को लेते हुए भारत उस प्रक्रिया में आगे बढ़े।
वेबिनार के गेस्ट ऑफ ऑनर श्री विनीत जोशी जी, डायरेक्टर जनरल, नेशनल टेस्टिंग एजेंसी और अध्यक्ष, एनसीटीई ने नई शिक्षा नीति के बारे में अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि एक अधिकारी के रूप में शिक्षा के क्षेत्र में काम करते हुए शिक्षा में रही कमियों को देखकर एक आस रहती थी कि सिस्टम कब बदलेगा और इस परिपेक्ष्य में नई शिक्षा नीति मेरे लिए पुराना सपना सच होने जैसी है।
इस शिक्षा नीति ने शुरुआती शिक्षा बच्चे की मातृभाषा में हो यह कह कर बहुत ही अच्छा काम किया है। जो बच्चे इस नई शिक्षा नीति के अंतर्गत पढ़कर आएंगे वह संपूर्ण रूप से भारतीय होंगे। वह ऐसे भारतीय होंगे जिनको अपने भारतीय होने पर गर्व होगा, उनके अंदर किसी भी तरह की हीन भावना नहीं होगी।
उन्होंने कहा कि हर बच्चे में कुछ ना कुछ करने की क्षमता होती है हम उसको वह परिवेश नहीं दे पाते। नई शिक्षा नीति बच्चे को वह परिवेश देने की बात पर बहुत ज्यादा फोकस करती है।
उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि परीक्षाओं का स्तर और हमारे बच्चे जो सीखते हैं, उसमें सामंजस्य नहीं है। क्वेश्चन पेपर की डिफिकल्टी का स्तर बच्चे की एबिलिटी के लेवल में तारतम्यता नहीं है।
आदर्श शिक्षा कैसे हो सकती है नई शिक्षा नीति यह बात कहती है। हमें उसका क्रियान्वयन करना होगा। इसके लिए शिक्षा, शिक्षण और अध्यापन की पद्धतियों को बदलना होगा।
अंत में उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति अभूतपूर्व है इस तरह की बातें पहले कभी नही हुई।
वेबिनार में विभिन्न विषयों पर हुई चर्चा के सदर्भ में प्रोफेसर उषा शर्मा, एनसीईआरटी अपने ‘क्लोसिंग रिमार्क्स’ प्रस्तुत करते हुए कहा कि आज संगोष्ठी के विषय की गंभीरता के बारे में डॉ।…पावन सिन्हा ‘गुरुजी’ ने जिन मुद्दों की ओर संकेत किया है वे अत्यंत संवेदनशील और चिंतनीय हैं! बच्चों की शिक्षा के प्रति एक गंभीर दृष्टिकोण तो चाहिए ही, साथ ही भारत की विविधता को भी ध्यान में रखना होगा! प्रो॰ चंदकिरण सलूजा जी ने नी शिक्षा की अनेक नवीन बातों से हमें अवगत कराया और यह समझने का अवसर दिया कि उदार हृदय और पैनी नज़र से चीजों को कैसे देखा,समझा जाता है! प्रोफेसर सरोज शर्मा जी ने स्कूल एजुकेशन से जुड़े अत्यंत महत्वपूर्ण पक्ष की हम सभी का ध्यान आकर्षित किया और वह है टीचर एजुकेशन! यह सत्य है कि शिक्षा की गुणवत्ता उसके शिक्षकों की गुणवत्ता पर निर्भर करती है! यही समग्र शिक्षा योजन का भी मानना है! श्री विनीत जोशी जी ने नई शिक्षा नीति के बारे में अपनी जो observations प्रस्तुत कीं, वे काफी सारगर्भित हैं और उनकी ओर गंभीरता से ध्यान दिया जान चाहिए!
ऋषिकुलशाला की रिसर्चर सुश्री ज्योति देसवाल ने ऋषिकुलशाला की ओर से वेबिनार के वक्ताओं, अतिथियों और प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापन किया और उन्होने विशेष रूप से श्रीनगर, जम्मू, मेघालय, असम, महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड, शांतिनिकेतन, राजस्थान, उत्तराखंड आदि राज्यों से जुड़े शिक्षक-प्रशिक्षकों का धन्यवाद ज्ञापन किया कि वे इतनी दूर से इस वेबिनार में जुड़े। शिक्षा के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान रखने वाले देश भर के जाने-माने शिक्षाविद, विद्वान और लगभग 1000 शिक्षक, शिक्षक-प्रशिक्षक, शोधार्थी, शिक्षार्थी, प्राचार्य, मुख्यध्यापक और शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने वाले प्रतिभागी इस वेबिनार से जुड़े! इस वेबिनार में नई शिक्षा नीति के विभिन्न पहलुओं पर हुई विशद चर्चा ने देश की नई शिक्षा नीति को गहराई से जानने, समझने का अवसर दिया। साथ ही बच्चों की शिक्षा के प्रति न्यायसंगत निर्णय और ठोस कार्य करने का मार्ग भी प्रशस्त किया!