भारत ही नहीं विश्व की कोई भी संस्कृति हो वहां शिक्षक को खास दर्जा प्राप्त है-प्राची शर्मा प्रदेश अध्यक्ष राष्ट्रीय समाज पार्टी


प्राची शर्मा प्रदेश अध्यक्ष  राष्ट्रीय समाज पार्टी 


 हिं.दै.आज का मतदाता शिक्षक का उद्देश्य सिर्फ शिक्षा देना ही नहीं है, बल्कि समाज में स्थापित बुराइयों को दूर कर चरित्र निर्माण करना भी है। शिक्षा का अर्थ किताबी ज्ञान कतई नहीं है, बल्कि इसके अंतर्गत चरित्र निर्माण, अनुशासन और तमाम सद्गुणों का समावेश भी है। शिक्षा को मानव व्यक्तित्व के विकास का साधन माना जाता है और शिक्षा का स्तर ही व्यक्ति को समाज में मान-सम्मान दिलाता है।
5 सितंबर को डॉ. सर्वपल्ली राधकृष्णन जी के जन्मदिन पर उनके द्वारा शिक्षा जगत में सराहनीय योगदान के कारण शिक्षक दिवस मनाया जाता है। 1962 में राष्ट्रपति बनने के डॉ. राधाकृष्णन ने शिक्षा को एक मिशन माना था। उनके विचार में शिक्षक होने का हकदार वही है, जो लोगों से अधिक बुद्धिमान, विनम्र और एक जिम्मेदार नागरिक बनाने वाला हो। डॉ. राधाकृष्णन शिक्षा के व्यवसायीकरण के कट्टर विरोधी थे। लेकिन आज के इस वैश्विक और आर्थिक युग में हर इंसान सुखी संपन्न होना चाहता है और ऐसे में शिक्षक भी पैसे के पीछे भागते नजर आते हैं और गलत रास्तों से नई-नई सुविधाओं को प्राप्त करने के लिए प्रयासरत हैं। शिक्षा को हर घर तक पहुंचाने के लिए तमाम सरकारी प्रयास के बावजूद भी व्यवसायीकरण ने शिक्षा को धंधा बना दिया है।समाज के ऐसे दुर्दिनों की अपेक्षा नहीं थी ..पर ये शिक्षक ,शिक्षक न हो कर  मास्टर ठहरे ...आचार्य चाणक्य ने कहा था जिस समाज के शिक्षक ही  अनपढ को अपना मुखिया मान बैठे उस समाज की सात पीढ़ियां लकवाग्रस्त हो जाती है ...और वो शिक्षक नहीं रहते वे लफंगे हो जाते है ।इससे ज्यादा कुछ क्या कहना ... आज शिक्षक और विद्यार्थी के इस तरह के संबंध नहीं रहे हैं। एक तरफ शिक्षकों की मनोदशा के बारे में भी सोचने की जरूरत है!!



समाज और शिक्षक के बीच की  दूरी संपूर्ण शिक्षा व्यवस्था में अव्यवस्था पैदा कर रहा है। अर्थात् समाज अध्यापकों के प्रति उदासीन है और अध्यापक सामाजिक जिम्मेदारी को भूल चुका है। इस प्रकार की स्थिति न समाज, न देश, न ही भविष्य के लिए लाभदायी है और न शिक्षकों के लिए। इसी उदासीनता का परिणाम है कि शिक्षक-और विद्यार्थी की परंपरा कई बार कलंकित हई है। जहां एक तरफ शिक्षक धन को अपनी पहली प्राथमिकता मानकर नैतिक मर्यादायों को तोड़ते हुए अशैक्षणिक वातावरण बनाने और कई बार छात्राओं के साथ गलत कार्यों में लिप्त मिलते हैं, तो दूसरी तरफ छात्र भी चरित्रहीनता का परिचय देते हुए ना सिर्फ शिक्षकों का मजाक उड़ाते हैं बल्कि कई बार गंभीर अपराध से भी नहीं चूकते।



कुल मिलाकर शिक्षक-शिष्य के सम्‍मानजक सम्बन्धों की छबि को खराब करने में दोनों का ही योगदान है।  शिक्षकों की उदासीनता और बच्चों की दिशाहीनता दोनों ही शिक्षा की गिरते स्तर के लिए जिम्मेदार हैं। जरूरत इस बात की है कि दोनों अपनी जिम्मेदारी को इमानदारीपूर्वक निर्वाह करे। शिक्षा व्यवस्था में मौजूद खामियों का पता लगाकर अनुकूल शैक्षिक वातावरण का निर्माण करना उनका दायित्व है। यही नहीं आधुनिक शिक्षा प्रणाली को अपनाते हुए विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास करने की क्षमता भी एक शिक्षक में होना अनिवार्य है, ताकि छात्रों का शैक्षणिक, मानसिक, सामाजिक व सांस्कृतिक विकास हो सके। कहा जाता है बच्चे तो बहते हुए पानी की तरह है, अर्थात् उन्हें जिस आकार में चाहे ढाला जा सकता है। छात्रों के भविष्य को बनाना और बिगाड़ना काफी हद तक शिक्षक और शिक्षा व्यवस्था पर निर्भर है।



शिक्षक और छात्रों के बीच की दूरी लगातार बढ़ती जा रही है और यही वजह है कि धीरे-धीरे सम्मान और आत्मीयता भी खत्म हो रही है। आधुनिकता की इस चकाचौंध में छात्रों ने भी शिक्षक से दूर हो इंटरनेट की दुनिया में कदम रख दिया है और नैतिक मूल्यों को भूल असामाजिक गतिविधियों की तरफ बढ़ चला है। शिक्षा व्यवस्था का भी राजनीतिकरण हो चुका है। शिक्षा के व्यवसायीकरण का ही परिणाम है कि आज नियुक्ति से लेकर ट्रांसफर और प्रमोशन तक में राजनीतिक हस्तक्षेप किया जाता है, जिसका असर देश के भविष्य पर पड़ना तय है।



विचार करिये ...विचार करिये ...वैसे आप तो परम श्रधेय है और उपरोक्त व्याख्या से परे एकमात्र शिक्षक है ऐसी आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है मेरी तरफ से आपको शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ।


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