हिं.दै.आज का मतदाता आज अमेरिकी राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए मतदान (Vote for US presidential election) हो गया। दुनिया भर की नज़र इस चुनाव के नतीज़ों पर लगी है। खरबों डॉलर और दुनिया की अर्थव्यवस्था, दुनिया भर के देशों के राष्ट्रीय हित दांव पर हैं। अपने अपने हिसाब से लोग डेमोक्रेट और रिपब्लिकन हो गए हैं। भारतीय मीडिया ट्रम्प की जीत में मोदी की जीत देख रहे हैं।
न्यूयार्क से ट्रम्प के घोर आलोचक डॉ पार्थ बनर्जी, जो नोआम चोम्स्की के मित्र और विश्वविख्यात शिक्षाविद हैं, ने अभी-अभी इस बारे में बंगला में एक लेख भेजा है और वे चाहते हैं कि भारत में हिंदी समाज के लोग इसे जरूर पढ़ें।
पूरे लेख का अनुवाद मैं नहीं कर पा रहा हूँ। इसके खास बिंदुओं को रेखांकित कर रहा हूँ।
अमेरिकी मीडिया के सर्वे में बाइडन की बढ़त बताई जा रही है। लेकिन प्रेम श्रीवास्तव को आशंका है कि अति राष्ट्रवादी, संरक्षण वादी और नस्लवादी ट्रम्प की जीत का आदेश है। जिसकी बहुत बड़ी वजह वे दो तिहाई अमेरिकी नागरिकों की शिक्षा स्कूल तक सीमित होना बता रहे हैं। घनघोर नस्लवादी मतदाताओं के बहुमत और ट्रम्प के नस्ली ध्रुवीकरण की राजनीति का ही अमेरिका में मौजूदा हालात में कामयाब हो जाने का अंदेशा है। अमेरिकी जनता भी अपढ़ अधपढ भारतीय जनता जैसी है जो मुद्दों और सिद्धांतों के मुताबिक वोट नहीं करने वाली है। वहां का जनादेश भी बहुसंख्यक साम्प्रदायिकता का महोत्सव बन जाने की आशंका है। गौरतलब है कि मोदी जैसी राजनीति करने वाले ट्रम्प की इस जीत में न मोदी के हाथ हैं और न ही भारत के राष्ट्रीय हित। इसे कायदे से समझ लेना बेहतर होगा। साफ शब्दों में लिखा है कि अब तक भारत और अमेरिका में सत्ता की जो राजनीतिक परम्परा है, उससे अशिक्षा के विरुद्ध शिक्षा, विज्ञानहीनता के विरुद्ध विज्ञान, धर्मान्धता के विरुद्ध धर्म, लिंग विषमता के स्त्रीमुक्ति, नस्ली हिंसा के विरुद्ध समता और न्याय की जीत हो गई तो कम से कम उन्हें अचरज नहीं होगा।
इस मायने में हिंदी समाज ट्रम्प की जीत में मोदी की जीत जरूर देख सकते हैं।
दुनिया भर में ट्रम्प और हिटलर के समर्थक और मददगार पैदा हो गए गए हैं। इनकी गुलामी से आज़ादी की राह बहुत मुश्किल है।