सुप्रीम कोर्ट और आंध्र हाईकोर्ट के जजों पर ‘अपमानजनक’ टिप्पणी करने पर सीबीआई ने मामला दर्ज किया


आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल ने एक शिकायत में कहा था कि राज्य में अहम पदों पर बैठे कुछ महत्वपूर्ण लोगों ने जानबूझकर सुप्रीम और हाईकोर्ट के कुछ जजों पर आदेश सुनाने में जाति व भ्रष्टाचार संबंधी आरोप लगाए. हाईकोर्ट के आदेश पर इसकी जांच राज्य सीआईडी से लेकर सीबीआई को सौंप दी गई है.


नई दिल्ली/अमरावती: सुप्रीम कोर्ट और आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीशों के खिलाफ सोशल मीडिया पर कथित रूप से अपमानजनक टिप्पणियां करने के मामले में सीबीआई ने सोलह लोगों को नामजद किया है.


अधिकारियों ने कहा कि सीबीआई ने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश पर अदालत के रजिस्ट्रार जनरल बी.राजशेखर की शिकायत पर राज्य सीआईडी द्वारा दर्ज 12 मामलों में जांच संभाल ली है.


शिकायत में आरोप लगाया गया कि ‘आंध्र प्रदेश राज्य में अहम पदों पर बैठे कुछ महत्वपूर्ण लोगों ने जानबूझकर न्यायाधीशों पर निशाना साधते हुए साक्षात्कार दिए, टिप्पणियां कीं और भाषण दिए और इनमें उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के कुछ न्यायाधीशों पर आदेश सुनाने में जाति तथा भ्रष्टाचार संबंधी आरोप लगाए गए और उन्होंने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा हाल ही में सुनाए गए फैसलों और आदेशों को लेकर फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया पर जजों के खिलाफ धमकाने वाले और अपशब्दों से भरे पोस्ट किए.’


उच्च न्यायालय ने 12 अक्टूबर को सीबीआई को मामले की जांच करने का तथा आठ सप्ताह में सीलबंद लिफाफे में रिपोर्ट जमा करने का निर्देश दिया था. मामले में अगली सुनवाई 14 दिसंबर को होगी.


उच्च न्यायालय ने कथित अपमानजनक टिप्पणियों पर संज्ञान लेते हुए सीबीआई को आंध्र प्रदेश में कुछ जाने-माने लोगों की भूमिका की जांच करने का निर्देश दिया था, जो जानबूझकर शीर्ष अदालत और हाईकोर्ट के जजों पर निशाना साध रहे थे.


अदालत ने कहा था, ‘उच्च न्यायालय और न्यायाधीशों के खिलाफ घृणा, अवमानना पैदा करने और वैमनस्य को बढ़ावा देने के लिए पोस्ट डाले गए.’


जस्टिस राकेश कुमार और जस्टिस जे. उमा देवी की पीठ ने राज्य सरकार के खिलाफ अदालत के कुछ निर्णयों के बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर न्यायाधीशों और न्यायपालिका के खिलाफ कथित रूप से अवमाननापूर्ण टिप्पणियां किए जाने के बाद आदेश पारित किया था.


उच्च न्यायालय के निर्देशों पर उसके रजिस्ट्रार जनरल ने सीआईडी में शिकायत दर्ज कराई, नाम और संबंधित साक्ष्य दिए, लेकिन, खबरों के मुताबिक, राज्य पुलिस की जांच इकाई ने केवल नौ लोगों को नामजद किया.


पीठ ने सुनवाई के दौरान मौखिक टिप्पणी में कहा, ‘उनके बयान लोकतंत्र के लिए खतरनाक हैं और न्यायपालिका पर हमले के समान हैं. अगर कोई सामान्य व्यक्ति सरकार के खिलाफ कोई टिप्पणी करता है तो ऐसे लोगों के खिलाफ तुरंत मामले दर्ज कर लिए जाते हैं.’


उन्होंने कहा, ‘अगर पदों पर बैठे लोगों ने न्यायाधीशों तथा अदालतों के खिलाफ टिप्पणियां कीं, तो मामले क्यों नहीं दाखिल किए गए? इन चीजों को देखते हुए हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि न्यायपालिका के खिलाफ जंग का ऐलान किया गया है.’


विशाखापत्तनम में सीबीआई कार्यालय ने संबंधित धाराओं के तहत मामले दर्ज किए हैं. सीबीआई को जांच सौंपते हुए उच्च न्यायालय ने अपने 12 अक्टूबर के आदेश में सीआईडी जांच को लेकर गंभीर निराशा प्रकट की थी.


अदालत ने कहा कि आंध्र प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री ने भी खुद को न्यायपालिका के खिलाफ तीखी टिप्पणियां करने से खुद को अलग नहीं रखा.


अदालत ने राज्यसभा सदस्य विजयसाई रेड्डी, वाईएसआर कांग्रेस के लोकसभा सदस्य नंदीगाम सुरेश, पूर्व विधायक अमानची कृष्ण मोहन, आंध्र प्रदेश विधानसभा के लिए स्थायी वकील मेत्ता चंद्रशेखर राव और अन्य के भी नाम लिए.


मालूम हो कि इससे पहले यह बीते अक्टूबर महीने में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेड्डी ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) एसए बोबड़े को पत्र लिखते हुए शीर्ष अदालत के जस्टिस एनवी रमन्ना समेत आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश समेत कुछ अन्य जजों पर गंभीर आरोप लगाए थे.


आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री का आरोप था  कि जस्टिस रमन्ना टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू के साथ अपने करीबी रिश्तों के चलते आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट की पीठों को प्रभावित कर रहे हैं.


10 अक्टूबर को हुई एक प्रेस वार्ता के बाद मुख्यमंत्री के प्रमुख सलाहकार अजेय कल्लम ने 6 अक्टूबर 2020 को लिखे गए इस पत्र की प्रतियां बांटते हुए मुख्यमंत्री का लिखा एक नोट पढ़कर सुनाया था, जिसमें मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया था कि जस्टिस रमन्ना ने राज्य की पिछली चंद्रबाबू नायडू-तेलुगूदेशम पार्टी (टीडीपी) सरकार में अपने प्रभाव का इस्तेमाल अपनी बेटियों के पक्ष में किया.


जगन रेड्डी ने हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति, रोस्टर और केस आवंटन को लेकर भी सवाल उठाए थे. मीडिया को दिए गए नोट में कहा गया था-



  • ‘जबसे नई सरकार ने नायडू के 2014-2019 के कार्यकाल में लिए गए कदमों के बारे में इन्क्वायरी शुरू की, यह स्पष्ट है कि जस्टिस रमन्ना ने चीफ जस्टिस जितेंद्र कुमार माहेश्वरी के माध्यम से राज्य के न्यायिक प्रशासन को प्रभावित करना शुरू कर दिया.’



  • ‘माननीय जजों का रोस्टर, जहां चंद्रबाबू नायडू के हितों से जुड़ी नीति और सुरक्षा के महत्वपूर्ण मामले पेश किए जाने थे, वे कुछ ही जजों को मिले- जस्टिस एवी शेषा सई, जस्टिस एम. सत्यनारायण मूर्ति, जस्टिस डीवीएसएस सोमय्याजुलु और जस्टिस डी. रमेश.


गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने बीते 18 महीनों में जगनमोहन रेड्डी सरकार के कई महत्वपूर्ण फैसलों की अनदेखी करते हुए लगभग 100 आदेश पारित किए हैं.


जिन फैसलों को हाईकोर्ट द्वारा रोका गया है उनमें अमरावती से राजधानी के स्थानांतरण के माध्यम से प्रशासन का विकेंद्रीकरण, आंध्र प्रदेश  परिषद को खत्म करने और आंध्र प्रदेश राज्य चुनाव आयोग आयुक्त एन. रमेश कुमार को पद से हटाने के निर्णय शामिल हैं.


इसके बाद भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल को पत्र लिखकर रेड्डी तथा उनके सलाहकार के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने की सहमति देने की मांग की थी.


हालांकि उन्होंने पत्र के सामने आने के समय और प्रेस कॉन्फ्रेंस के ज़रिये इसे सार्वजनिक करने को संदिग्ध कहा था, लेकिन अवमानना कार्यवाही की इजाज़त नहीं दी थी.


जगन रेड्डी के इस पत्र को लेकर सुप्रीम कोर्ट में तीन अलग-अलग याचिकाएं वकील जीएस मणि, वकील सुनील कुमार सिंह तथा ‘एंटी-करप्शन काउंसिल ऑफ इंडिया ट्रस्ट’ की ओर से दायर की गई हैं.


लाइव लॉ के अनुसार, मणि द्वारा दायर की गई याचिका न्यायपालिका की स्वतंत्रता और अखंडता के महत्व को रेखांकित करती है और जगन से यह घोषित करने के लिए मांग करती है कि उनके पास अपना पद संभालने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि वह इसका दुरुपयोग कर रहे हैं.


सुनील कुमार सिंह ने अपनी याचिका में कहा कि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री को यह स्पष्ट करने के लिए एक कारण बताओ नोटिस जारी किया जाना चाहिए कि उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों न की जाए.


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