पांच राज्यों में 30 फ़ीसदी से अधिक महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार: एनएफएचएस रिपोर्ट

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताबिक महिलाओं के ख़िलाफ़ घरेलू हिंसा के मामलों में सबसे बुरा हाल कर्नाटक, असम, मिज़ोरम, तेलंगाना और बिहार का है, जहां तीस प्रतिशत से अधिक महिलाओं को अपने पति द्वारा शारीरिक और यौन हिंसा का सामना करना पड़ा है.

(फोटो साभार: विकीमीडिया कॉमन्स /CC BY-SA 2.0)

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हिंदी दैनिक आज का मतदाता नई दिल्ली: देश के 22 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के मुताबिक, पांच राज्यों की 30 फीसदी से अधिक महिलाएं अपने पति द्वारा शारीरिक एवं यौन हिंसा की शिकार हुई हैं.

वहीं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) ने कोविड-19 महामारी के मद्देनजर ऐसी घटनाओं में वृद्धि की आशंका जताई है.

महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा के मामलों में सबसे बुरा हाल कर्नाटक, असम, मिजोरम, तेलंगाना और बिहार में है.

सर्वेक्षण में 6.1 लाख घरों को शामिल किया गया. इसमें साक्षात्कार के जरिये आबादी, स्वास्थ्य, परिवार नियोजन और पोषण संबंधी मानकों के संबंध में सूचना एकत्र की गई.

एनएफएचएस-5 सर्वेक्षण के मुताबिक, कर्नाटक में 18-49 आयु वर्ग की करीब 44.4 फीसदी महिलाओं को अपने पति द्वारा घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ा. जबकि, 2015-2016 के सर्वेक्षण के दौरान राज्य में ऐसी महिलाओं की संख्या करीब 20.6 फीसदी थी.

सर्वेक्षण के आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में 40 फीसदी महिलाओं को उनके पति द्वारा शारीरिक और यौन हिंसा झेलनी पड़ी जबकि मणिपुर में 39 फीसदी, तेलंगाना में 36.9 फीसदी, असम में 32 फीसदी और आंध्र प्रदेश में 30 फीसदी महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार हुईं.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक इस सर्वेक्षण में सात राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में पिछले एनएफएचएस सर्वेक्षण की तुलना में 18-49 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं में घरेलू हिंसा के मामलों में वृद्धि दर्ज की गई.

इन सात राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में- असम, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, सिक्किम, जम्मू और कश्मीर और लद्दाख शामिल हैं.

आंकड़ों के अनुसार, नौ राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों – असम, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गोवा, मेघालय, सिक्किम, पश्चिम बंगाल, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख – में 18-29 वर्ष आयु वर्ग की महिलाओं में यौन हिंसा की प्रतिशत में वृद्धि हुई है, जिन्हें 18 साल की उम्र तक यौन हिंसा का सामना करना पड़ा.

इस बीच, सामाजिक कार्यकर्ताओं और एनजीओ ने घरेलू हिंसा के मामलों में वृद्धि के लिए कम साक्षरता दर और शराब का सेवन समेत अन्य कारणों को जिम्मेदार ठहराया है.

जनस्वास्थ्य विशेषज्ञ पूनम मुतरेजा ने कहा कि बड़े राज्यों में महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा के मामलों की संख्या में वृद्धि चिंता का विषय है क्योंकि यह सभी क्षेत्रों में प्रचलित हिंसा की संस्कृति को दर्शाता है.

उन्होंने कहा, ‘दशकों से भारतीय समाज में पितृसत्ता निहित है जो घरेलू हिंसा को प्रोत्साहित करता है.’

मुतरेजा ने कहा, ‘एनएफएचएस के सर्वेक्षण अनुसार, 31 प्रतिशत विवाहित महिलाओं को शारीरिक, यौन या भावनात्मक हिंसा का सामना करना पड़ा. इससे स्पष्ट है कि पिछले सर्वेक्षण के बाद से स्थिति और अधिक खराब हुई है. यह रिपोर्ट दर्शाता है कि कोविड-19 से पहले से ही हिंसा की यह महामारी प्रचलित थी जो इसके प्रभाव से प्रकट हो गया.’

मुतरेजा ने कहा, ‘इस साल कोरोना वायरस के प्रसार के साथ घरेलू हिंसा की घटनाओं में वृद्धि दर्ज की गई है. भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को घरेलू हिंसा को एक सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता के रूप में देखना चाहिए और इसे रोकने के लिए तत्काल कदम उठाना चाहिए.’

महिला अधिकार कार्यकर्ता शमीना शफीक ने कहा कि सरकार को घरेलू हिंसा को लेकर सख्ती से पेश आने की जरूरत है.

उन्होंने कहा, ‘दुर्भाग्य से आदमी को लगता है कि महिला को पीटना उसका अधिकार है. वह इस तथ्य का आनंद लेता है कि वह किसी दूसरे व्यक्ति के जीवन को नियंत्रित करता है. आज भी सरकार इस बारे में बात नहीं कर पा रही है कि किसी भी व्यक्ति के लिए यह कितना बुरा है. हिंसा करने वालों  के लिए दीवारों पर लिखना चाहिए कि घरेलू हिंसा गलत है.’

वहीं, पीपुल्स अगेंस्ट रेप्स इन इंडिया (पीएआरआई) की प्रमुख योगिता भयाना ने कहा कि घरेलू हिंसा में वृद्धि दर्ज करने का कारण महिलाओं में दुर्व्यवहार प्रति जागरूकता आना और रिपोर्ट करना भी हो सकता है.

उन्होंने कहा, ‘इस तरह की घटनाओं में वृद्धि दर्ज हुई है क्योंकि महिलाओं में भी जागरूकता बढ़ रही है. वे इसकी रिपोर्टिंग कर रही हैं और इसके बारे में बात कर रही हैं. पहले वे अपनी शिकायतों को दबाती थीं.’

भयाना ने कहा, ‘सोशल मीडिया की वजह से भी घरेलू हिंसा की रिपोर्टिंग में वृद्धि हुई है. महिलाएं अधिक मुखर हो गई हैं और उनमें सहनशीलता कम है, जो बहुत अच्छी है.’

एनएफएचएस ने सर्वेक्षण के पहले चरण के तहत 17 राज्यों और पांच केंद्र शासित प्रदेशों की रिपोर्ट जारी की है. स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि सर्वेक्षण के दूसरे चरण की रिपोर्ट अन्य राज्यों को कवर करते हुए अगले साल जारी की जाएगी.

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