NSO सर्वे : देश के 50% किसानों पर कर्ज, सुरजेवाला बोले- अमीरों के 10 लाख करोड़ माफ़ हो सकते हैं तो किसानों के क्यों नहीं?

 


भारत में कई महीनों से चल रहे किसान आंदोलन पर सत्ताधारी पार्टी के कई नेताओं ने सवाल खड़े किए हैं। उनकी कोशिश किसानों को मोदीराज में खुशहाल दिखाने की रही है।

लेकिन उनके दावों को ख़ारिज करता है राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) का ताज़ा सर्वे।

इस सर्वे के अनुसार, वर्ष 2019 तक देश के 50 प्रतिशत से अधिक किसान क़र्ज़ में थे। प्रति परिवार औसतन क़र्ज़ 74,121 रुपए था।


 किसानों की इस दुर्दशा पर रणदीप सुरजेवाला ने कहा, “7 साल में उद्योगपतियों का ₹10,80,000 CR माफ़ पर किसान को क़र्ज़माफ़ी के नाम फूटी कौड़ी नही। यही है मोदी सरकार !”

एनएसओ ने अपने सर्वे में बताया है कि 2019 में 50 प्रतिशत से अधिक कृषक परिवार कर्ज में थे और उन पर प्रति परिवार औसतन 74,121 रुपये कर्ज था।

किसानों के कुल बकाया क़र्ज़ में से 69.6 प्रतिशत बैंक सहकरी समितियों और सरकारी एजेंसियों जैसे संस्थागत स्रोतों से लिए गए।

इस क़र्ज़ के 20.5 प्रतिशत पेशेवर सूदखोरों से लिए गए। कुल क़र्ज़ का 57.5 प्रतिशत कृषि उद्देश्य से लिया गया।

सर्वे के अनुसार, 50.2 प्रतिशत किसान परिवार क़र्ज़ के बोझ तले दबे हैं। इसका मतलब आधे से ज़्यादा किसान महंगाई के साथ-साथ क़र्ज़ की मार भी झेल रहे हैं।

और यह सर्वे वर्ष 2019 तक की जानकारी देता है। कोरोना महामारी आने के बाद से तो स्थिति और भी भयावय हो गई है।

2018-19 (जुलाई-जून) में प्रति किसान परिवार की औसत मासिक आय 10,218 रूपए थी। इसमें परिवार को मज़दूरी से औसतन 4,063 रूपए, फसल उत्पादन से औसतन 3,798 रूपए, पशुपालन से औसतन 1,582 रूपए मिले थे।

इसके अलावा गैर-कृषि व्यवसाय से औसतन 641 रूपए और भूमि पट्टे से औसतन 134 रूपए मिले थे।

आपको बता दें कि एनएसओ की रिपोर्ट के अनुसार देश में 45.8 अन्य पिछड़े वर्ग किसान हैं। इसके अलावा अनुसूचित जाती के 15.9 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति के 14.2 प्रतिशत और अन्य 24.1 प्रतिशत किसान हैं।

इससे साफ़ हो जाता है कि इस कृषि प्रधान देश में लगभग आधे किसान तो ओबीसी हैं। और देश के आधे किसान क़र्ज़ के बोझ तले दबे हैं। इस सर्वे से प्रतीत होता है कि भाजपा किसानों के खुशहाल होने की ‘भ्रामक’ तस्वीर पेश करती है।

इसके साथ-साथ ओबीसी का वोट पाने का दावा करने वाली भाजपा इन किसानों के लिए ज़मीनी काम नहीं कर रही है।

वहीँ दूसरी तरफ देश के बड़े-बड़े उद्योगपतियों के क़र्ज़ माफ़ कर दिए जाते हैं, या फिर वो देश छोड़कर ही भाग जाते हैं।

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