दिग्विजय सिंह ने कहा कि बेरोज़गारी देश के युवा की सबसे बड़ी बेजारी है। गुण है, क्षमता है, उमंग है, जच्चा है, शिक्षा है, पर रोजगार नहीं। दिसंबर 2021-1 जनवरी, 2022 को बेरोजगारी दर बढ़कर 7.9: हो गई। यहां तक कि शहरों में बेरोजगारी दर 10: का आंकड़ा पार कर गई। कोरोना काल से पहले ही साल 2017-18 में बेरोजगारी दर बढ़कर 6.1: हो गई थी. जो साल 2019 एनएसएसओ की रिपोर्ट के मुताबिक 45 साल में सबसे अधिक थी। चिंता की बात यह है कि 20-29 साल के युवा लोगों में बेरोजगारी की दर 28: है। युवा जितना ज्यादा पढ़ा-लिखा है, उतना ज्यादा बेरोजगार है। 20-24 साल की आयुवर्ग के ग्रेजुएट्स में 63: युवा बेरोजगार है। महिलाओं में औसत बेरोजगारी दर 14.28ः है। फिक्र की बात यह भी है कि विश्व बैंक के मुताबिक भारत की महिलाओं की लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन जो साल 2005 में 26: थी, वो साल 2020 में घटकर 15.5: रह गई।
उन्होंने कहा कि मोदी जी युवाओं को 2 करोड़ रोजगार हर साल देने का वादा कर सत्ता में आए थे। 7 साल में 14 करोड़ नए रोजगार देना तो दूर पहले से ही रोजगार कर रहे लोगों की नौकरियां चली गई। भारत को साल 2028 तक 34.35 करोड़ नए रोजगार सृजन करने होंगे, यानि हर साल 3 से 4 करोड़ नई नौकरियां, मौजूदा गति से भाजपा सरकार को इतनी नौकरियां देने में 1,560 साल का समय लगेगा। युवाओं की बेरोजगारी पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि युवाओं के प्रति बेरुखी का आलम यह है कि अकेले केंद्र सरकार में 30 लाख सरकारी पद खाली पड़े हैं और लगभग 30 लाख सरकारी पद राज्यों में भी खाली हैं। युवा धक्के खा रहा है और सरकारी खाली पद भी ना भरकर पैसा बचा रही हैं। सेंटर फॉर इकोनॉमिक डाटा एंड एनालिसिस के मुताबिक साल 2016-17 में मैनुफैक्चरिंग सेक्टर में 5.10 करोड़ लोग नौकरी करते थे। साल 2020-21 में इनकी संख्या 46 प्रतिशत कम होकर मात्र 2.70 करोड़ रह गई है।
उन्होंने कहा कि आज भारत में कुल वर्किंग एज पॉपुलेशन लगभग 108 करोड़ है, पर करने को काम नहीं। भाजपा शासित राज्यों में तो ये हालात और बुरे हैं। भाजपा शासित हरियाणा में बेरोजगारी की दर 34.1 प्रतिशत है। लगभग यही हाल बिहार में बेरोजगारी का है। उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी की दर दिसंबर 2021 में 32.79 प्रतिशत है। भाजपा शासित गोवा जैसे छोटे राज्य में भी बेरोजगारी की दर 31.99 प्रतिशत है। यही हाल उत्तराखंड का है, जहां एक तिहाई से आधे युवा रोजगार की तलाश में दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। कांग्रेस सरकार ने देश के युवाओं व छात्रों को कानूनी तौर से शिक्षा का अधिकार दिया। पर सात साल में मोदी सरकार ने केवल शैक्षणिक ढांचे पर प्रहार किया और शिक्षा व शिक्षण संस्थानों की स्वायत्तता को लगातार रौद बेजार किया। शिक्षा का निजीकरण और छात्र अधिकारों का दमन ही मोदी सरकार का एकमात्र रास्ता है।
दिग्विजय सिंह ने कहा कि एक तरफ तो मोदी सरकार यूनिवर्सिटीज व उच्च शिक्षण संस्थानों की अनाप-शनाप फीस बढ़ा रही है और विरोध करने पर छात्रों पर लाठिया व अश्रु गैस चला रही है तो दूसरी ओर एजुकेशन सेस का पैसा ही इस्तेमाल नहीं किया। मोदी सरकार ने साल 2014-15 से साल 2018-19 के बीच सेकंडरी व हायर एजुकेशन सेस का ₹49,101 करोड़ इस्तेमाल ही नहीं किया। भाजपा शासित उत्तर प्रदेश में देश में सबसे अधिक 3,20,000 स्कूली शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं। उच्च शिक्षण संस्थानों की स्थिति तो और बदतर है। 40 प्रतिशत तक शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं। इस सरकार ने उच्च शिक्षा पर भी कैंची चलाई है साल 2013-14 (कांग्रेस सरकार) में यूजीसी का बजट ₹5,147 करोड़ था। मोदी सरकार के सात साल पूरे होने पर भी यूजीसी का बजट बढ़ने की बजाय साल 2021-22 में कम होकर ₹4693 करोड़ हो गया। यही नहीं मोदी सरकार के आते ही साल 2015 में यूजीसी ने यूनिवर्सिटीज की फडिंग में 55 प्रतिशत की कटौती कर डाली। साल 2016 में बड़ी शानोशौकत के साथ भाजपा सरकार ने हायर एजुकेशन फाईनेंसिंग एजेंसी बनाई। परंतु अब खुद गोदी सरकार ने हायर एजुकेशन फाईनेंसिंग एजेंसी का बजट साल 2020-21 में ₹2,200 करोड़ से घटाकर साल 2021-22 में मात्र ₹1 करोड़ कर दिया।
उन्होंने कहा कि छात्रों और युवाओं की आलोचना की आवाज को दबाने के लिए उनके विरोध को कुचलने के लिए मोदी सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी। आज कॉलेज से यूनिवर्सिटीज़ तक चारों ओर भय, उत्पीड़न, दमन व दबाव का माहौल है। भाजपा के छात्र संगठन एक विशेष तरह के गुंडावाद व जातिगत भेदभाव को बढ़ावा देते हैं तथा रोहित वेमुला (हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी), इलाहाबाद विश्वविद्यालय की पहली महिला अध्यक्ष ऋचा सिंह, गुरमेहर कौर व पूरे देश में छात्रों के नेताओं और नुमाईंदों पर अंकुश लगाते हैं। अभिव्यक्ति के दमन और अत्याचार के चलते जाधवपुर विश्वविद्यालय, पंजाब यूनिवर्सिटी, पुणे यूनिवर्सिटी, एनआईटी श्रीनगर, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, गुजरात विश्वविद्यालय, दिल्ली यूनिवर्सिटी, जेएनयू भगवंत राव मंडलोई कृषि महाविद्यालय (मध्यप्रदेश), निफ्ट (मुंबई), आईआईटी मद्रास जैसे अनेकों शिक्षण संस्थानों पर हमला बोला जा रहा है।
दिग्विजय सिंह ने कहा कि शिक्षा नीति 2020 का मुख्य केंद्र ऑनलाईन शिक्षा है। इसमें ऑनलाईन शिक्षा से पढ़ने वाले विद्यार्थियों की औसत 26 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत करने का दावा किया है। परंतु कंप्यूटर व इंटरनेट न उपलब्ध होने के कारण गरीब, दलित, पिछड़े, आदिवासी व ग्रामीण अंचल के छात्र अलग-थलग पड़ जाएंगे और देश में एक नया डिजिटल डिवाईड पैदा होगा। नई क्रेडिट पॉलिसी यूनिवर्सिटी और कॉलेज को अलग-अलग ग्रेड में बांटेगी और प्राईवेटाईजेशन को बढ़ावा देगी। बेहतर यूनिवर्सिटी को आत्मनिर्भर होने के लिए कहा जाएगा। यानि ऐसी तकरीबन 100 यूनिवर्सिटीज में छात्रों को अपना खर्च खुद वहन करना पड़ेगा और सुदूर क्षेत्र एवं ग्रामीण अंचल की कई यूनिवर्सिटी बंद हो जाएगी। बोर्ड ऑफ गवर्नर सभी उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रजातांत्रिक तरीकों, विचार-विमर्श, एक्जिक्यूटिव काउंसिल, एकेडेमिक काउंसिल व क्रिटिकल थिंकिंग की सोच को पूरी तरह से खत्म कर देगा। नई शिक्षा नीति शुरू की स्कूली शिक्षा को लेकर आंगनवाड़ियों पर निर्भर है। परंतु आगनवाड़ी वर्कर तो सरकारी कर्मचारी भी नहीं उन्हें 8 महीने के डिप्लोमा कोर्स द्वारा प्रशिक्षित करना अपने आप में एक असंभव कार्य है। कुल मिलाकर शिक्षा नीति छात्र विरोधी है।
उन्होंने कहा कि भाजपा की मानसिकता ही महिला विरोधी है। सवाल पूछने का समय आ गया है कि देश के नीति-निर्माण में महिलाएं कहां हैं? राजनीति में पुरुषों का वर्चस्व क्यों और महिलाएं क्यों नदारद हैं? महिलाएं अभी भी साक्षरता में क्यों? कामकाज में महिलाएं कम क्यों? महिलाओं के लिए पर्याप्त स्वास्थ्य सेवा क्यों नहीं ? महिलाएं आज भी जघन्य अपराधों का शिकार क्यों? और सबसे बड़ा सवाल जो कोई नहीं पूछ रहा- महिलाएं क्या चाहती है? आज जब वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की ग्लोबल जेंडर गप रिपोर्ट 2021 में भारत 156 देशों में 28 पायदान नीचे गिर 140 वें स्थान पर आ गया है, तो सवाल पूछना और जरूरी हो गया है।
उन्होंने कहा कि महिलाओं की सुरक्षा व सम्मान के निर्भया फंड में आज तक ₹6,213 करोड़ का बजट आवंटित किया गया, पर मोदी सरकार द्वारा मात्र ₹4,139 करोड़ ही जारी किए गए। इससे भी दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि मात्र ₹2,992 करोड़ ही खर्च किए गए, यानि 52 प्रतिशत बजट न आवंटित हुआ, न खर्च हुआ। वही संघ और बीजेपी के नेता महिलाओं को अपमानित करने वाली भाषा का उपयोग करते हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने लिखा, यदि स्त्री को खुला व अनियंत्रित छोड़ दिया जाए तो वह व्यर्थ व विनाशक भी हो सकता है, वैसे ही स्त्री रूप शक्ति को भी स्वतंत्रता की नहीं उपयोगी रूप में संरक्षण और चौनलाईजेशन की आवश्यकता है। यदि महिलाओं में पुरुषों के गुण आ जाते हैं, तो वो राक्षस बन जाती हैं। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने अपमानजनक बयान देते हुए कहा, यदि कोई लड़की शिष्ट कपड़े पहनती है, तो लड़के उसे गलत नजर से नहीं देखते हैं। यदि आपको स्वतंत्रता चाहिए, तो आप नंगे घूमना शुरू क्यों नहीं कर देतीं? आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने विवाह की परंपरा का अपमान करते हुए कहा, विवाह एक सामाजिक अनुबंध है.. इसके तहत पति और पत्नी के बीच एक सौदा होता है। यद्यपि लोग इसे विवाह संबंध कह सकते हैं।
दिग्विजय सिंह ने कहा कि बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना का मोदी सरकार ने जोर-शोर से ढिंढोरा तो पीटा पर इसका लाभ नहीं मिला। एक तरफ तो इसका बजट काट दिया और जो पैसा दिया, उसका 78.91 प्रतिशत मोदी जी के विज्ञापनों पर खर्च कर दिया। आवंटित बजट का कुल पैसा रिलीज नहीं किया गया। 2011 की जनगणना के अनुसार देश में 15 साल से कम उम्र की 632 लाख बेटियां हैं, जिनकी संख्या एक अनुमान के मुताबिक अब 750 लाख हो गई है। अगर इश्तिहार का खर्च निकालकर प्रति बेटी वार्षिक आवंटन देखा जाए तो यह 50 पैसे प्रति वर्ष प्रति बेटी है। एक साल में 50 पैसा खर्च करने से बेटियां कैसे बढ़ेगी, इसका अंदाजा खुद लगाया जा सकता है।
प्रेस वार्ता में कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत, पूर्व विधायक एवं कोषाध्यक्ष सतीश अजमानी, प्रदेश महासचिव संगठन दिनेश सिंह, मीडिया विभाग के वाइस चेयरमैन पंकज श्रीवास्तव, प्रिंट मीडिया संयोजक अशोक सिंह, डिजिटल मीडिया संयोजक अंशू अवस्थी, प्रदेश प्रवक्ता कृष्णकांत पाण्डेय, आसिफ रिजवी रिंकू, प्रियंका गुप्ता, संजय सिंह, मुकेश चौहान, सचिन रावत, प्रदीप सिंह समेत पार्टी के पदाधिकारी व कार्यकर्ता मौजूद रहे।