किसान आंदोलन के नाम पर हुए बवाल का जो सच सामने आया है उससे देश को सतर्क हो जाना चाहिए

 


देश ने हाल के कुछ वर्षों में कई आंदोलन देखे। सबसे पहले जन लोकपाल के लिए आंदोलन हुआ। इस आंदोलन को मिले समर्थन के बलबूते अरविंद केजरीवाल सत्ता की सीढ़ियां चढ़ कर अपनी मंजिल पर पहुँच गये लेकिन दिल्ली में जन लोकपाल नहीं बनाया। देश ने दिल्ली में हरियाणा के कुछ पहलवानों का आंदोलन भी देखा। यह पहलवान राजनीति के अखाड़े में कूदने के लिए उसी खेल को नुकसान पहुँचाते रहे जिसकी बदौलत उन्होंने दौलत और शोहरत कमाई। देश ने किसान आंदोलन भी देखा। किसानों के कल्याण और उनके बेहतर भविष्य के लिए मोदी सरकार जो तीन कानून लेकर आई उसके बारे में भ्रम फैला कर देशभर में किसानों का आंदोलन खड़ा कर दिया गया जिसके चलते सरकार को तीनों कृषि कानून वापस लेने पड़े। खुद को किसान कहने वाले आंदोलनकारियों ने कानून व्यवस्था का भी खूब मजाक बनाया और सरकार को झुकाने का अभियान सफलतापूर्वक चलाकर दिखाया। मगर अब इस किसान आंदोलन का सच एक प्रमुख आंदोलनकारी ने ही देश के सामने रख दिया है। हम आपको बता दें कि भारतीय किसान यूनियन के चढ़ूनी गुट के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने कहा है कि किसानों ने हरियाणा में कांग्रेस पार्टी के पक्ष में माहौल बनाया था। मीडिया में छपी खबरों के मुताबिक गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने कहा है कि किसानों ने हरियाणा में कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाया था, लेकिन पार्टी ने सब कुछ वरिष्ठ नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर छोड़ दिया था। संयुक्त संघर्ष पार्टी के संस्थापक चढ़ूनी ने विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की हार का सबसे बड़ा कारण यही बताया है। चढ़ूनी के बयान पर सियासत भी शुरू हो गयी है और भाजपा ने कांग्रेस से इस मुद्दे पर स्पष्टीकरण की मांग भी की है। जाहिर है कांग्रेस चढ़ूनी के बयान से किनारा ही करेगी लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि किसानों के नाम पर खड़ा किया गया आंदोलन पूरी तरह राजनीतिक था और इसका एकमात्र मकसद मोदी सरकार को सत्ता से बाहर करना था। समय-समय पर इस आंदोलन से जुड़े तमाम सच सामने आते ही रहे हैं। टूलकिट गैंग के सदस्यों ने भोले भाले किसानों को बरगला कर अपने राजनीतिक हित तो साध लिये मगर अन्नदाता का नुकसान करवा दिया।

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आम किसानों का कैसे अपने राजनीतिक हितों के लिए इन तथाकथित किसान नेताओं ने दुरुपयोग किया यह हमने लोकसभा चुनावों के दौरान भी देखा था। तीनों कृषि कानून काफी पहले ही यानि साल 2022 के अंत में ही वापस लिये जा चुके थे लेकिन उसके बावजूद 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान पंजाब में भाजपा के सभी उम्मीदवारों के घर के बाहर बड़ी संख्या में किसानों को धरने पर बैठा दिया गया था। पंजाब में चुनाव प्रचार की कवरेज के दौरान जब मैंने संगरूर, लुधियाना, अमृतसर, पटियाला आदि क्षेत्रों में धरने पर बैठे लोगों से पूछा कि आपकी मांगें क्या हैं तो सबका जवाब एक ही था कि सारी समस्याओं के हल तक हम यहां से नहीं हटेंगे। जब मैंने पूछा कि समस्याएं क्या हैं तो हर जगह से यही जवाब मिला कि स्कूल अच्छे बनने चाहिए, अस्पतालों में सारी सुविधाएं होनी चाहिए, सड़कें अच्छी बननी चाहिए। स्पष्ट था कि यह धरना प्रदर्शन भी एक टूलकिट का हिस्सा था। लोकसभा चुनावों के लिए मतदान होते ही यह प्रदर्शनकारी भाजपा उम्मीदवारों के घर के बाहर से हट गये। ऐसा लगा कि उनकी सारी समस्याओं का या तो समाधान हो गया है या टूलकिट के तहत दिया गया टास्क पूरा हो गया है।

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